क्या
कहूं उम्र की बसर कैसे
कट गया तन्हा ये सफर कैसे...
टूटकर गिर गया गुले-मासूम
बागबॉं की लगी नजर कैसे...
इश्क बनकर बहार आयी थी
छोडकर जा रही असर
कैसे...
वक्ते-रुख्सतपे है यही ख्वाहिश
रोक लूं आपको, मगर कैसे...
दिल कहॉं,ये तो एक सहरा है
आयेगी फिर घटा इधर कैसे...
आंधियोंने न कुछ भी छोडा था
फिर ये यादों के खंडहर कैसे...
मैं सियह-बख्त नाम शब है मेरा
देख पाऊंगी मैं सहर कैसे...
जर की है इसकी हर सलाख तो क्या
इस क॑फस को मै कहूं घर कैसे....
संगीता जोशी