कविता---शीर्षक व्हायलिन (
व्हायोलिन )
गा रहा प्रशांति
में आज एक व्हायलिन्
मन हि मन में रह गया निशब्द एक
व्हायलिन्...
मिलाए सुर में तार-तार षड्ज-पंचमों के
साथ
यह प्रभात मग्न भैरो राग एक
व्हायलिन्....
अभंग और भजन में मुग्ध राग रागिणी
धुंद केहरवा हुआ ताल, एक व्हायलिन्...
सुरों की बाग और बसंत उसपे ये बहार भी
तू ने ते दिया मुझे फुलों में एक
व्हायलिन्.....
स्वामी, तुम यहीं पे हो, मगर न देख पाउं मैं
तार तार आर्त, आसुओं में एक व्हायलिन्...
16 जुलाई 2016
-----संगीता
जोशी