Tuesday, May 17, 2016



(नुक्ता देने की सहूलियत Fontमें नहीं है; Please bear without it ! Thanks !)

 हम से क्या हो सका?--सिर्फ रोते रहे
जो नहीं पा सके, वो भी खोते रहे....

नातवॉं जिन्दगी दब चली, फिर भी हम
कोहे-गम शानेपर अपने ढोते रहे...

बह रही थी सबा कुछ इशारे किये
जानकर बूझकर हम हि सोते रहे...

 फस्ल काटेंगे क्या ख्वाब के खेत में
रेत में बीज हर बार बोते रहे...

दागे-दिल मिटने की कुछ उम्मीदें न थीं
दर्या-ए-अश्क में  दिल भिगोते रहे...

नज्म क्या , गीत क्या, क्या गजल क्या पता
दर्द लफ्जों में  चुनकर पिरोते रहे....

संगीता.

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