संगीता जोशीं च्या काही उर्दू गझला
1.
दर्दे- दिल गर जवॉं नहीं होता
यूं गजलमें अयॉं नहीं होता...
क्यों उठाता कोई कलम अपना
गर ये दिल बेजुबॉं नहीं होता...
हम खुशी के चलो, न काबिल थे
गम भी क्यों मेहेरबॉं नहीं होता...
फन का इजहारे-आम यूं न करो
शख्स
हर कद्रदॉं नहीं होता...
ढूंढ
लेना मुझे नहीं मुश्किल
घर
हवा का कहॉं नहीं होता..
दे
रहे हैं गवाही शम्सो-कमर
अस्ल
में आसमॉं नहीं होता...
इश्क
मौजूद हो अगर दिलमें
जल
भी जाए, धुआं नहीं होता....
संगीता जोशी
2.
हम भी कैसे दीवाने थे
बिना शमाके परवाने थे...
फिरसे आज हुए हैं ताजा
जो कुछ भूले अफसाने थे..
जिन के हाथों हुए शिकस्ता
लोग वो जाने पहचाने थे...
सादा-लोही अपनी ऐसी
दुश्मन से भी याराने थे...
दिल कैसे मख्मूर न होगा
गम ही गम के पैमाने थे...
दूर से जिसको गुलशन जाना
जाकर देखा वीराने थे...
संगीता जोशी
3
कुछ और चल, ऐ दिलजदा, मौसम बदल गये हैं
वो काफिले कभी के आगे निकल गये हैं...
कुछ हम भटक गये थे ख्वाबों के रास्तोंपर
ऐसा मकाम आया अब कुछ सँभल गये हैं..
है इन्तजार अब भी उन बेमुरव्वतों का
कदमोंतले गुलों को
कल जो कुचल गये हैं...
दामन में जो लगी है अब आग क्या बुझाएं
जो ख्वाब थे सजाये
सारे वो जल गये हैं...
ढूंढेंगे खुद को कैसे? गुमनामो-लापता हैं
हम जिन्दगीके हाथों से ही फिसल गए हैं....
संगीता जोशी
4.
क्या कहूं उम्र की बसर कैसे
कट गया तन्हा ये सफर कैसे...
टूटकर गिर गया गुले-मासूम
बागबॉं की लगी नजर कैसे...
इश्क बनकर बहार आयी थी
छोडकर जा रही असर
कैसे...
वक्ते-रुख्सतपे है यही ख्वाहिश
रोक लूं आपको, मगर कैसे...
दिल कहॉं,ये तो एक सहरा है
आयेगी फिर घटा इधर कैसे...
आंधियोंने न कुछ भी छोडा था
फिर ये यादों के खंडहर कैसे...
मैं सियह-बख्त नाम शब है मेरा
देख पाऊंगी मैं सहर कैसे...
जर की है इसकी हर सलाख तो क्या
इस क॑फस को मै कहूं घर कैसे....
संगीता जोशी
5.
हम से क्या हो सका सिर्फ रोते रहे
जो नहीं पा सके वो भी खोते रहे...
नातचॉं जिंदगी दब चली फिर भी हम
कोहे-गम शानों पर अपने ढोते रहे...
चल रही थी सबा कुछ इशारे किए
जानकर बूझकर हम हि सोते रहे...
फस्ल काटेंगे क्या ख्वाब के खेत में
रेत में बीज हर बार बोते रहे...
दागे-दिल मिटने की कोइ उम्मिद न थी
दरिया-ए-अश्क में दिल भिगोते रहे...
नज्म क्या , गीत क्या, क्या गजल क्या
पता
दर्द लफ्जों में चुनकर पिरोते रहे...
6.
मैं कफन लाचार हूं
लाश का सिंगार हूं...
सह न पाओगे तपिश
जल रहा अंगार हूं...
गुल कि तुम खुश्बूभरा
मैं नुकीला ख्वार हूं...
कल कोई कीमत नहीं
आज का अखबार हूं...
कद्र जिसकी ना हुई
मैं वही शहकार हूं...
हर पुरानी चीज का
मैं नया बाजार हूं...
सिर्फ जुल्मी हाथ की
बेखबर तल्वार हूं...
तुम करो इन्कार भी
मैं छुपा इकरार हूं...
-----संगीता
जोशी
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